कभी अकेले में मिल...

​कभी अकेले में मिल कर झंझोड़ दूंगा उसे​;
​जहाँ​-​जहाँ से वो टूटा है​ ​जोड़ दूंगा उसे;​​

​​​ ​मुझे छोड़ गया ​ ​ये कमाल है​ ​उस का​;
​इरादा मैंने किया था के छोड़ दूंगा उसे​;

​पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज​;
​कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे​;

​ ​मज़ा चखा के ही माना हूँ ​मैं भी दुनिया को​;
​समझ रही थी के ऐसे ही ​छोड़ दूंगा उसे​;

​ ​बचा के रखता है​ खुद को वो मुझ से शीशाबदन​;​
उसे ये डर है के तोड़​-​फोड़ दूंगा उसे​।
~ Rahat Indori

लोग हर मोड़ पे...

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं;
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं;

मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ;
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं;

नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से;
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं;

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए;
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं।
~ Rahat Indori

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